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सुखी।
च-और। आमोद - प्रमोद - कारिणः- ।
आनन्द - प्रमोद करनेवाले- । स्वाहा-स्वाहा । अर्थ-सङ्कलना
ॐ आप पुत्र (पुत्री), मित्र, भाई (बहिन), स्त्री, हितैषीं, स्वजातोय, स्नेहोजन और सम्बन्धी परिवारवालोंके सहित आनन्द-प्रमोद करनेवाले हों-सुखी हों ॥१०॥ मूल
(८) अस्मिंश्च भूमण्डले, आयतन-निवासि-साधुसाध्वी-श्रावक-श्राविकाणां रोगोपसर्ग-व्याधि - दुःखदुर्भिक्ष-दौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु ॥११॥ शब्दार्थअस्मिन्-इस ।
रहे हुए साधु, साध्वी, श्रावक च-और।
और श्राविकाओंके । भूमण्डले-भूमण्डलपर ।
रोगोपसर्ग - व्याधि - दुःखभू-अनुष्ठान भूमिका मध्यभाग।
दुभिक्ष - दौर्मनस्योपशममण्डल - उसके आसपासको
नाय-रोग, उपसर्ग, व्याधि, भूमि । स्नात्रविधि करते समय जिस भूमिकी मर्यादा
दुःख, दुष्काल और विषादके बाँधी हो, उसको भूमण्डल
उपशमनद्वारा। कहते हैं।
शान्तिः-शान्ति । आयतन - निवासि - साधु- । शान्ति-अरिष्ट अथवा कषायोसाध्वी - श्रावक - श्रावि
दयका उपशमरूप । काणा-अपने अपने स्थानमें | भवतु-हो ।
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