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मूल
९ आत्मानुशासन
[ सिलोगो] एगो हं नत्थि मे कोइ, नाहमन्नस्स कस्सइ ।
एवं अदीण-मणसो, अप्पाणमणुसासइ ॥ ११ ॥ शब्दार्थएगो-एक, अकेला ।
अन्नस्स-दूसरेका। हं-मैं ।
कस्सइ-किसी। नत्थि-नहीं है।
एवं-इस प्रकार।
अदोण-मणसो-दीनतासे रहित मे-मेरा।
मनवाला, अदीन मनसे कोइ-कोई।
विचारता हुआ। न-नहीं।
अप्पाणमणुसासइ - आत्माको अहं-मैं।
शिक्षा दे, आत्माको समझाये । अर्थ-सङ्कलना
'मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं है और मैं किसी दूसरेका नहीं हँ,' इस प्रकार अदीन मनसे विचारता हुआ आत्माको समझाये ( समझाना चाहिये ) ॥ ११ ॥
सूल
एगो मे सासओ अप्पा, नाण-दसण-संजुओ । सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग-लक्खणा ॥१२॥
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