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२९६ योग्य पदार्थों को प्रकाशित करने में दीपकसमान और समस्त विश्व में अद्वितीय सारभूत ऐसे समस्त श्रुतका मैं भक्तिपूर्वक अहर्निश आश्रय ग्रहण करता हूँ।। ३ ।।
बादल-रहित स्वच्छ आकाशको नील-प्रभाको धारण करनेवाले आलस्यसे मन्द ( मदपूर्ण ) दृष्टिवाले, द्वितीयाके चन्द्रकी तरह वक्र दाढ़ोंवाले, गले में बँधी हई घण्टियोंके नादसे मत्त, झरते हुए मदजलको चारों ओर फैलाते हुए ऐसे दिव्य हाथीपर विराजित मन:कामनाओंको पूर्ण करनेवाले, इच्छित रूपको धारण करनेवाले और आकाशमें विचरण करनेवाले सर्वानुभूति यक्ष मुझे सर्व कार्यों में सिद्धि प्रदान करें ॥४॥ सूत्र-परिचय
इस सूत्रमें चार स्तुतियाँ हैं। उनमें पहली स्तुति श्रीमहावीर स्वामीकी है, दूसरी स्तुति सर्व जिनोंकी है, तीसरी स्तुति द्वादशाङ्गीकी है और चौथी स्तुति सर्वानुभूति यक्षको है।
सूत्र की चतुर्थ-स्तुतिमें आये हुए बालचन्द्र पदसे यह सूत्र श्रीबालचन्द्रसूरिने बनाया हो ऐसा प्रतीत होता है। सम्प्रदाय ( किंवदन्ती ) के अनुसार ये बालचन्द्रसूरि श्रीहेमचन्द्राचार्य के शिष्य थे और बादमें गुरुके साथ विरोध होनेसे पृथक् हो गये थे, इसलिये उनके द्वारा रचित स्तुतिकी संघकी ओरसे स्वीकृति नहीं हुई; परन्तु कालधर्म प्राप्त होनेके पश्चात् वे व्यन्तर जातिके देव हुए और उन्होंने श्रीसंघमें उपद्रव करना आरम्भ किया, तब श्रीसंघने द्रव्य-क्षेत्र -काल-भावका विचार करके इस स्तुतिको स्वीकृति दी थी और तबसे यह स्तुति पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणके प्रसङ्गपर बोली जाती है ।
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