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ताः -वे |
वाच:- वाणी, वचन | देशना-समये - धर्मोपदेश करते श्रीसम्भवजगत्पतेः - श्री सम्भवनाथ
समय ।
भगवन्तको ।
अर्थ- सङ्कलना
धर्मोपदेश करते समय जिनकी वाणी विश्वके भव्यजनरूपो बगीचेको सींचनेके लिये नालोके समान है, वे श्रीसम्भवनाथ भगवन्तके वचन जयको प्राप्त हो रहे हैं ।। ५॥
मूल-
अनेकान्त-मताम्मोधि - समुल्लासन - चन्द्रमाः । भगवानभिनन्दनः ||६ ॥
दद्यादमन्दमानन्दं
शब्दार्थ
अनेकान्त - मताम्भोधि - समुल्लासन- चन्द्रमा:- अनेकान्त मतरूपी समुद्रको पूर्णतया उल्लसित करनेके लिये चन्द्रस्वरूप । अनेकान्तमत - वस्तुको भिन्न भिन्न दृष्टिबिन्दु से देखनेका सिद्धान्त । अम्भोधि - समुद्र । समुल्लासन-अच्छी प्रकार से
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उल्लसित करना | चन्द्रमाः
-चन्द्र ।
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दद्याद्-दे, प्रदान करें अमन्दम् - अति, परम । आनन्दं - आनन्द | भगवान् - भगवान् ।
अभिनन्दन:- श्रीअभिनन्दन नामके चौथे तीर्थङ्कर ।
अर्थ- सङ्कलना
अनेकान्त - मतरूपी समुद्रको पूर्णतया उल्लसित करनेके लिये चन्द्र-स्वरूप भगवान् श्रीअभिनन्दन हमें परम आनन्द प्रदान करें ॥६॥
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