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प्रभुः - प्रभु | तुल्य
मनोवृत्तिः - समानभाव
धारण करनेवाले
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।
तुल्य - समान । मनोवृत्ति भाव । अस्तु हों । पार्श्वनाथ:-श्रीपार्श्वनाथ |
वः - तुम्हें ।
अर्थ- सङ्कलना
अपने लिए उचित ऐसा कृत्य करनेवाले, कमठासुर और धरणेन्द्रपर समानभाव धारण करनेवाले श्रीपार्श्वनाथ प्रभु तुम्हें आत्म- लक्ष्मी के लिये हों ।। २५ ।।
मूल
श्रीमते वीरनाथाय, सनाथायाद्भुतश्रिया । महानन्द - सरो - राजमरालायार्हते नमः || २६ ||
शब्दार्थ
श्रीमते - अनन्त ज्ञानादि - लक्ष्मीसे युक्त के लिये ।
वीरनाथाय - श्रीवीरस्वामी के लिये,
श्रीमहावीर स्वामी के लिये ।
सनाथाय - अद्भुत - श्रिया
श्रिये - लक्ष्मीके लिये, आत्म
लक्ष्मी के लिये |
अलौकिक लक्ष्मो से युक्त के लिये ।
सनाथ-युक्त । अद्भुत - अलौकिक । श्री - लक्ष्मी । यहाँ
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अलौकिक लक्ष्मीसे चौंतोस अतिशय समझने चाहिये । महानन्द- सरो- राजमरालाय - परमानन्दरूपी राजहंस - स्वरूप |
सरोवर में
सरस्-सरोवर । राजहंस | अर्हते - पूज्य । नमः - नमस्कार हो ।
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राजमराल
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