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३६२ हैं-वन्दित हैं, बादमें देवियोंद्वारा प्रणिधानपूर्वक प्रणाम किये जाते हैं और तत्पश्चात् हाव, भाव, विभ्रम और अङ्गहार करती हुई देवर्तिकाओंसे वन्दन किये जाते हैं, ऐसे तीनों लोकके सर्व जीवोंको शान्ति करनेवाले, सर्व पाप और दोषसे रहित उत्तम जिन भगवान् श्रीशान्तिनाथको मैं नमस्कार करता हूँ॥ २९-३०-३१-३२॥
मूल
( विशेषकद्वारा श्रोअजितनाथ और शान्तिनाथकी स्तुति ) छत्त-चामर -पडाग- जूअ-जव- मंडिआ, झयवर-मगर--तुरय-सिरिवच्छ-सुलंछणा । दीव - समुद्द- मंदर- दिसागय- सोहिया, सत्थिअ--वसह-सीह-रह-चक्क- वरंकिया ॥३३॥[३२]
-ललिययं ॥ सहाव-लट्ठा सम-प्पइट्ठा, अदोस-दुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा । पसाय-सिट्टा तवेण पुट्ठा, सिरीहिं इट्टा रिसीहिं जुट्ठा
॥ ३४ ॥ [३३]
-वाणवासिआ ॥ ते तवेण धुय-सव्व-पावया, सवलोअ-हिय-मूल-पावया । संथुया अजिय-संति-पायया, हुतु मे सिव-सुहाण-दायया।
३५ ॥ [३४] -अपरांतिआ ॥
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