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अर्थ- सङ्कलना
उपसर्गका निवारण करनेवाला यह ( अजित - शान्ति - स्तव ) पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में अवश्य पढ़ना और सबको सुनना चाहिये ।। ३९ ।।
३६७
मूल
जो पढइ जो अनिसुणइ, उभओ कालं पि अजिय - संति - थयं । न हु हुंति तस्स रोगा, पुव्बुप्पन्ना वि नासंति ॥४०॥[३९]
शब्दार्थ
जो-जो !
पढइ-पढ़ता है ।
जो-जो । अ-और
निसुणइ - नित्य सुनता है । उभओ कालं पि-प्रात:काल
और सायङ्काल |
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अजिय - संति - थयं - अजितशान्ति - स्तवको |
न हु हुति - होते ही नहीं ।
तस्स - उसको ।
रोगा - रोग ।
पुवपन्ना - पूर्वोत्पन्न ।
विभी ।
नासंति- नष्ट होते हैं ।
अर्थ-सङ्कलना
" यह अजित - शान्ति -- स्तव” जो मनुष्य प्रातः काल और सायङ्काल पढ़ता है अथवा दूसरोंके मुखसे नित्य सुनता है, उसको रोग होते ही नहीं और पूर्वोत्पन्न हों, वे भी नष्ट हो जाते हैं ॥ ४० ॥ मूल
जड़ इच्छह परम-पयं, अहवा कित्तिं सुवित्थडं भुवणे । तो तेलुक्कुद्धरणे, जिण-वयणे आयरं कुणही ||४१ || [४०]
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