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अर्थ-सङ्कलना
परमानन्दरूपी सरोवरमें राजहंस-स्वरूप (समान तथा अलौकिक लक्ष्मीसे युक्त ऐसे पूज्य श्रीमहावीरस्वामीके लिये नमस्कार हो।।२६।।
मूल
कृतापराधेऽपि जने, कृपा-मन्थर--तारयोः । ईषद्-बाष्पार्द्रयोर्भद्रं, श्रीवीरजिन-नेत्रयोः ।।२७।।
शब्दार्थ
कृतापराधेऽपि जने-अपराध किये ईषद् - वाष्पार्द्रयोः - कुछ अश्रुसे हुए मनुष्यपर भी।
भीगे हुए। ___ जिसने अपराध किया है __ ईषद्-अल्प,कुछ। बाष्पवह कृतापराध ।
अश्रु । आर्द्र-भीगे हुए । कृपा-मन्थर - तारयोः - अनुक- भद्र-कल्याण । म्पासे मन्द कनीनिकावाले। श्रीवीरजिन-नेत्रयोः - श्रीवीर
कृपा-अनुकम्पा । मन्थर- जिनेश्वर के दोनों नेत्रोंका, श्री... मन्द । तारा-कनीनिका । महावीर प्रभुके नेत्रोंका। अर्थ-सङ्कलना
अपराध किये हए मनुष्यपर भी अनुकम्पासे मन्द कनीनिकावाले और कुछ अश्रुसे भीगे हुएश्रीमहावीर प्रभुके नेत्रोंका कल्याण हो।॥२७॥ मूल
[ आर्या ] जयति विजितान्यतेजाः, सुरासुराधीश-सेवितःश्रीमान्। विमलस्त्रास-विरहितस्त्रिभुवन-चूडामणिभगवान्॥२८॥
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