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३५७ चिल्लएहि-देदीप्यमान । वंदिया-बन्दित । संगयंगयाहि-प्रमाणोपेत अङ्गवाली पुणो पुणो-बार-बार । अथवा नाट्य करनेके लिये
तं-उनको। सज्जित ।
अहं-मैं। संगय-सुन्दर, प्रमाणोपेत ।
जिणचन्द-जिनचन्द्रको, जिने- अंगया-अङ्गवाली।
श्वरको। भत्ति - संनिविट्ठ - वंदणाग - याहिं-भक्तिपर्वक वन्दन करने
अजियं-श्रीअजितनाथको । के लिये आयो हुई।
जियमोहं-जिन्होंने मोहको जीत भत्ति-भक्ति। संनिविट्ठ-व्याप्त, |
लिया है उनको, मोहको सर्वथा पूर्ण । वंदण-वन्दन । आ
जीतनेवालेको। गया-आयी हुई।
धुय-सव्व-किलेसं-सर्व क्लेशोंका हुति-होते हैं।
नाश करनेवालेको। ते-उन दोनों।
पयओ-प्रणिधानपूर्वक । ( य-और )
पणमामि नमस्कार करता हूँ ! अर्थ-सङ्कलना
आकाशमें विचरण करनेवाली, मनोहर हंसी जैसी सुन्दर गतिसे चलनेवालो, पुष्ट नितम्ब और भरावदार स्तनोंसे शोभित, कलायुक्तविकसित कमलपत्रके समान नयनोंवाली, पुष्ट और अन्तर-रहित स्तनोंके भारसे अधिक झुकी हुई गात्रलताओंवाली, रत्न और सुवर्णकी झूलती हुई मेखलाओंसे शोभायमान नितम्ब-प्रदेशवाली, उत्तम प्रकारके करधनीवाले नूपुर और टिपकीवाले कङ्कण आदि विविध आभूषण धारण करनेवाली, प्रीति उत्पन्न करनेवाली, चतुरोंके मनका हरण करनेवाली, सुन्दर दर्शनवाली, जिन-चरणोंको नमन करनेके लिये तत्पर, आँखमें कज्जल, ललाटपर तिलक और स्तन-मण्डलपर
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