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किन्नर-व्यन्तर जातिके एक प्रधान चतुर्विध सङ्घसे विधि
प्रकारके देव । उरग-महो- पूर्वक वन्दित । रग। ये भी एक प्रकारके समण-श्रमण। व्यन्तरदेव ही हैं । नमंसिय- अभयं-भय-रहित । नमस्कार किये हुए, पूजित।
अणहं-पाप-रहित देव- कोडि - सय संथुयं-शत- अरयं-कर्म-रहित । कोटि ( एक अरब ) देवोंद्वारा
अरुयं-रोग-रहित । अच्छी प्रकार स्तुति किये | अजियं-किसीसे पराजित नहीं हुए।
होनेवाले । देव-वैमानिक देव । कोडि- अजियं-श्रीअजितनाथको । करोड़। सय-सौ । संथय | पयओ-मन, वचन और कायाके -स्तुति किये हुए।
प्रणिधान-पूर्वक । समण-संघ-परिवंदियं - श्रमण- | पणमे-प्रणाम करता हूँ।
अर्थ-सङ्कलना
निश्चलता-पूर्वक भक्तिसे नमे हुए तथा मस्तकपर दोनों हाथ जोड़े हुए ऐसे ऋषियोंके समूहसे अच्छी तरह स्तुति किये गये; इन्द्रकुबेरादि लोकपालदेव और चक्रवर्तियोंसे अनेक बार स्तुत, वन्दित और पूजित; तपसे तत्काल उदित हुए शरद्ऋतुके सूर्यसे भी अत्यधिक कान्तिवाले;-आकाशमें विचरण करते करते एकत्रित हुए चारणमुनियोंसे मस्तकद्वारा वन्दित, असुरकुमार, सुपर्णकुमार आदि भवनपति देवोंद्वारा उत्कृष्ट प्रणाम किये हुए, किन्नर और महोरग आदि व्यन्तर देवोंसे पूजित; शत-कोटि ( एक अरब ) वैमानिक देवोंसे स्तुति किये हुए, श्रमण-प्रधान चतुर्विध सङ्घद्वारा विधि-पूर्वक वन्दित, भय-रहित, पाप-रहित, कर्म-रहित, रोग-रहित और किसीसे भी पराजित नहीं होनेवाले देवाधिदेव श्रीअजितनाथको मैं
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