________________
३२८
अर्थ-सङ्कलना
वीतराग, विपुल तपसे आत्माके अनन्तज्ञानादि निर्मल स्वरूपको प्राप्त करनेवाले, ( चौंतीस अतिशयोंके कारण ) अनुपम माहात्म्यमहाप्रभाववाले और सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी ( ऐसे ) दोनों जिनवरोंकी मैं स्तुति करता हूँ ॥ २॥
सव्व-दुक्ख-प्पसंतीणं, सव्व-पाव-प्पसंतीणं । सया अजिय-सतीणं, नमो अजिय-संतीणं ॥३॥
-सिलोगो ॥ शब्दार्थ
सव्व - दुक्ख - प्पसंतीणं - सर्व | अजिय – संतीणं- अखण्ड शान्ति
दुःखोंका प्रशमन करने वाले । धारण करनेवाले। सव्व-दुक्ख-आधि-व्याधि और
अजिय-जिनका रागादिद्वारा उपाधि ये तीनों प्रकारके
पराभव न हो सके ऐसी, दुःख । पसंति-प्रशमन ।
अखण्ड । सव्व- पाव - प्पसंतीणं - सर्व
पापोंका प्रशमन करनेवाले । नमो-नमस्कार हो । पाव-पाप ।
अजिय - संतीणं- श्रीअजितनाथ सया-सदा।
। और श्रीशान्तिनाथको । अर्थ-सङ्कलना
सर्व दुःखोंका प्रशमन करनेवाले, सर्व पापोंका प्रशमन करने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org