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अर्थ- सङ्कलना-
जिनका दर्शन भव- रोग से पीड़ित जन्तुओंके लिये वैद्यके दर्शन समान है तथा जो निःश्रेयस - ( मुक्ति ) रूपी लक्ष्मी के पति हैं, वे श्रीश्रेयांसनाथ तुम्हारे श्रेय - मुक्ति के लिये हों ।। १३ ।।
मूल
sanga
शब्दार्थ
विश्वोपकारकीभूत- तीर्थकृत् - कर्म - निर्मितिः । सुरासुर - नरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः ॥ १४ ॥
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विश्वोपकारकीभूत- तीर्थकृत्
कर्म - निर्मितिः - विश्वपर महान् उपकार करनेवाले, तोर्थङ्कर नाम - कर्मको बाँधनेवाले ! विश्वोपकारकीभूत विश्वपर
मल
महान् उपकार करनेवाले ।
तीर्थकृत् - कर्म - तीर्थङ्कर - नाम
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कर्म | निर्मिति - निर्माण, बाँधना ।
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सुरासुर - नरैः- सुर, असुर मनुष्यों द्वारा । पूज्य:- पूज्य ।
अर्थ- सङ्कलना
विश्वपर महान् उपकार करनेवाले, तीर्थङ्कर - नाम - कर्मको बाँधनेवाले तथा सुर, असुर और मनुष्योंद्वारा पूज्य ऐसे श्रीवासुपूज्यस्वामी तुम्हें पवित्र करें ॥ १४ ॥
और
वासुपूज्य :- श्रीवासुपूज्यस्वामी । पुनातु - पवित्र करें । वः - तुम्हें ।
विमलस्वामिनो वाचः, कतक - क्षोद -- सोदराः । जयन्ति त्रिजगच्चेतो - जल - नैर्मल्य - हेतवः ॥ १५ ॥
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