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२७९ सूर्योदयके बाद एक पोरिसी । भोजन करनेके पात्र अथवा
जितना समय व्यतीत हो चम्मच आदि । वहाँतक चारों आहारका |
अलेव-ऐसे पात्रादिको पोंछ त्याग करनेको पोरिसी
लेना। कहते हैं। साड्ढपोरिसि-डेढ़ पोरिसी।
.. मिहत्थ-संसठ्ठणं-गृहस्थसे जो ।
मिला हुआ हो उससे। साड्ढ-आधेसे युक्त, डेढ़।
गिहत्थ-भोजन देनेवाले (से)। पच्छन्न-कालेणं-कालज्ञान न
संसद-मिला हआ। भोजन होनेसे ।
देनेवालेकी असावधानीके दिसा-मोहेणं-दिशाका विपरीत
कारण विकृतिसे मिला हुआ। भास होनेसे, दिङ्मोहसे। साहुवयणेणं-साधुका वचन सु
उक्खित्त - विवेगेणं- जिस पर
विकृति रखकर उठा ली गयो ननेसे, 'उग्घाडा पोरिसी' ऐसा साधुका वचन सुननेसे ।
हो ऐसी वस्तु काममें लानेसे । पुरिमड्ढ-दिनका पहला आधा
उक्खित्त-उठा ली गयी। विवेगभाग पूर्वार्ध ।
त्याग, विभाग करना ! अवड्ढ-बादका आधा भाग, पडुच्च-मक्खिएणं - साधारण अपरार्ध ।
घृत आदि चुपड़ा हुआ हो एगासणं-एकाशन, एक बार
ऐसी वस्तुसे। ___ खानेका नियम।
पडुच्च-सर्वथा शुष्क ऐसे मांड बे-आसणं-द्वयशन, दो बार
आदि का आश्रय लेकर। खानेका नियम ।
मक्खिअ-जो चुपड़नेमें आया विगइयो-विकृति, विगइ।। लेवालेवेणं-लेपालेपसे, लेपको पारिट्ठावणियागारेणं - विधिअलेप करनेसे ।
पूर्वक परठवना पड़े उससे । लेप-आयंबिलमें त्याग करने- सागारिआगारेणं-गृहस्थ आदियोग्य विकृतिसे लिप्त | के आ जानेसे आहार करनेके
हो।
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