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शब्दार्थएगो-एक ।
मे-मेरे । मे-मेरी।
बाहिरा भावा - बाह्य - भाव, सासओ-शाश्वत, अमर ।
बहिर्भाव । अप्पा-आत्मा।
सव्वे-सब । नाण-दंसण-संजुओ-ज्ञान और संजोग - लक्खणा - पुद्गलके दर्शनसे युक्त ।
संयोगसे उत्पन्न, संयोगसे सेसा-शेष, दूसरे सब ।
उत्पन्न । अर्थ-सङ्कलना
ज्ञान और दर्शनसे युक्त एक मेरी आत्मा ही अमर है और दूसरे सब संयोगसे उत्पन्न बहिर्भाव हैं ।। १२ ।। मल
१० सर्व सम्बन्धका त्याग संजोग-मूला जीवेण, पत्ता दुक्ख-परंपरा ।
तम्हा संजोग-संबंधं, सव्वं तिविहेण वोसिरिअं॥१३॥ शब्दार्थसंजोग-मूला-संयोगके कारण । संजोग-संबंधं-संयोग - सम्बन्ध
उत्पन्न हुई, कर्म-संयोगके को, कर्म-संयोगोंको। कारण ही।
सव्वं-सर्व । जीवेण-जीवने।
तिविहेणं-तीन प्रकारसे, मन, पत्ता-प्राप्त की है।
वचन और कायासे । दुक्ख-परंपरा-दुःखकी परम्परा । वोसिरिअं- वोसिराया-त्याग किया तम्हा -अत एव ।
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