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प्रश्न-संथारेकी सामान्य विधि क्या है ? उत्तर-संथारेकी सामान्य विधि यह है कि(१) तृण; सूखा घास अथवा कमलीका संथारा करना और उसपर
तकिया आदि साधन न रखकर हाथका तकिया देकर सोना । (२) वाम-पार्श्वसे सोना। (३) सोते समय मुर्गीकी तरह पैरोंको घुटनोंके यहाँसे सिकोड़ लेना। (४) यदि पैरोंको घुटनेके यहाँसे सिकुड़ना अनुकूल न हो तो पैर . लम्बे कर लें किन्तु ऐसा करते समय जिस भूमिपर पैर रखने हों
उसका प्रमार्जन कर लेना चाहिए। (५) पैर लम्बे करनेके बाद सिकोड़ने हों तो घुटनोंका भाग पुंजना
जिससे जोव-विराधना होना सम्भव न हो। यदि करवट बदलनी हो तो शरीरका प्रमार्जन करना । तात्पर्य यह है कि सोनेके पश्चात् इच्छानुसार करवटें नहीं बदली
जा सकतीं। (७) सोनेके बाद कायचिन्ता ( मल-मूत्र-त्याग ) आदिके लिये
उठना पड़े तो निद्रासे सर्वथा मुक्त होकर ही जाना योग्य है, अन्यथा निद्रावस्थामें उठकर इधर उधर धक्के खाते हुए
चलना, यह आत्मनिष्ठ पुरुषके लिये योग्य नहीं । (८) बराबर जागृत होनेके लिये प्रथम द्रव्य, क्षेत्र, काल और
भावसे विचारणा करनी चाहिये कि 'मैं कौन हूँ ?' 'अभी प्रव्रजित हूँ कि अप्रव्रजित ?' 'व्रतमें हूँ कि व्रतसे बाहर ?' 'कहाँ सोया हुआ हूँ ?' 'पहली, दूसरी या तीसरी मंजिल पर अथवा किसी अन्य स्थानपर ( क्षेत्र ) ? 'कितना समय व्यतीत हुआ होगा ( काल ) ? मेरे अभी उठनेका प्रयोजन क्या है ( भाव ) ? आदि ।
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