________________
मूल
१२ क्षमापना
[ दोहा ]
खमिअ खमाविअ मड् खमह, सव्वह जीव - निकाय ! | सिद्धह साख आलोयण, मुज्झह वइर न भाव ॥ १५ ॥
शब्दार्थ
खमिअ-क्षमा करके (क्षमा किया)
।
खमाविअ - क्षमा कराकर, क्षमा
माँगकर ( क्षमा माँगी ) ।
मइ - मुझे ।
- क्षमा करो ।
२६८
खमह -
सव्वह-आप सब |
जीव- निकाय ! हे जीव-समूह !
सिद्धह-सिद्धोंकी ।
साख- साक्षी में |
आलोयण - आलोचना करता हूँ ।
Jain Education International
मुज्झह-मेरा ।
वइर- वैर |
न- नहीं ।
भाव-भाव |
अर्थ-सङ्कलना
हे जीव- समूह ! आप सब खमत - खामणा करके मुझे क्षमा करो। मैं सिद्धोंकी साक्षी में आलोचना करता हूँ कि मेरा किसी भी जीवके साथ वैर भाव नहीं है ।। १५ ।।
मूल
सव्वे जीवा कम्म - वस, चउदह - राज-भमंत । ते मे सव्व खमाविआ, मज्झ वि तेह खमंत ॥ १६ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org