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उपदेश से इन्होंने (१) अपरिचित फल नहीं खाना, (२) प्रहार करनेसे पूर्व सात कदम पीछे हटना, (३) राजाकी पटरानी के साथ सांसारिक भोग नहीं भोगना तथा ( ४ ) कौएका मांस नहीं खाना, ये चार नियम ग्रहण किये और अन्त तक इनका दृढ़तापूर्वक पालन किया, जिससे मरकर बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुए ।
३१ गजसुकुमाल :- श्रीकृष्णके छोटे भाई । बाल्यावस्था में वैराग्य हुआ । माता-पिताने मोहपाश में बाँधनेके लिये विवाह कर दिया । परन्तु शीघ्र ही संसारका त्याग करके श्रीनेमिनाथप्रभुके निकट जाकर इन्होंने दीक्षा ग्रहण की; और उनकी आज्ञा लेकर श्मशान में कायोत्सर्ग करके ध्यान में खड़े रहे । इतनेमें इनका श्वसुर सोमशर्मा ब्राह्मण उधरसे निकला । वह गजसुकुमालको मुनिवेशमें ध्यानमग्न देखकर अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और उसने अपनी पुत्रीका जीवन बिगाड़नेके कारण इनको योग्य दण्ड देनेका निर्णय किया । अतः वहाँ पास में ही जो चिता जल रही थी, उसमें से धधकते हुए अङ्गारे ले कर, इनके मस्तक पर रख दिये । गजसुकुमाल इससे तनिक भी क्षुब्ध नहीं हुए । अपि तु मनको ध्यान में और भी दृढ़ किया । ऐसा करने से ये अन्तकृत् केवली हुए और मोक्षमें गये ।
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३२ अवन्तिसुकुमाल :- अवन्ति - सुकुमार । इनके पिताका नाम भद्र और माताका नाम भद्रा था । ये उज्जयिनीके निवासी थे और इनके बत्तीस पत्नियाँ थीं। एक बार आर्य सुहस्तिसूरि के समीप 'नलिनीगुल्म' अध्ययन सुनते हुए जाति स्मरण-ज्ञान उत्पन्न हुआ और सब वैभव छोड़कर उन्हींसे दीक्षा ग्रहण की । तदनन्तर श्मशानभूमिमें कायोत्सर्गध्यान में मग्न थे तब एक सियारने इनके शरीर में काट खाया, परन्तु ये ध्यान से बिलकुल डिगे नहीं। फिर शुभ ध्यानमें मृत्युको प्राप्त हो, नलिनीगुल्म विमानमें देव हुए । इनके मृत्यु- स्थल पर माता-पिताने एक बड़ा प्रासाद बँधवाकर उसमें पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिष्ठा करवायी, जो 'अवन्तिपार्श्वनाथ' के नामसे प्रसिद्ध हैं ।
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