________________
२३८ .... १६ ज्येष्ठा :-ये चेटक राजाकी पुत्री और प्रभु महावीरके ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धनकी पत्नी थीं। प्रभुसे लिये हुए बारह व्रत इन्होंने अटल निश्चयसे पाले थे । इनके शीलकी शक्रेन्द्रने भी स्तुति की थी। १. १७ सुज्येष्ठा :-चेटककी पुत्री । सङ्केतानुसार इन्हें लेने आया हुआ श्रेणिक राजा भूलसे इनको बहिन चेल्लणाको लेकर चला गया, इस कारण वैराग्यको प्राप्त होकर इन्होंने श्रीचन्दनबालासे दीक्षा ली और विविध तपोंका आचरण करके आत्म-कल्याण किया । - १८ मृगावती :-ये भी चेटक राजाकी पुत्री थीं और कौशाम्बीके राजा शतानीकसे इनका विवाह हुआ था। एक बार इनका केवल अंगूठा देकर किसी चित्रकारने इनका पूरा चित्र बनाया, उसे देखकर शङ्कित हुए शतानीक राजाने चित्रकारका अपमान किया, तब उस चित्रकारने वह चित्र उज्जयिनीके राजा चण्डप्रद्योतको दिखाया। फल स्वरूप चण्डप्रद्योतने शतानीक राजासे मृगावतीकी माँग की, किन्तु शतानीकने मना कर दिया । इससे कौशाम्बीपर चढ़ाई की। शतानीक उसी रात्रिको अपस्मारके रोगसे मर गया, इसीलिये मृगावतीने युक्तिसे चण्डप्रद्योतको वापस हटाया और चातुर्यसे राज्य-रक्षाके लिये राजधानी में अत्यन्त दृढ़ दुर्ग (किला) बनवाया। वहाँ प्रभु महावीरका शुभागमन होनेपर रानी मृगावतीने नगरके द्वार खोल दिये और वन्दन करनेके लिये गयो । चण्डप्रद्योत भी प्रभु महावीरके दर्शनार्थ आया । समवसरणमें प्रभु महावीरके समक्ष अपने बालकुमारको चण्डप्रद्योतकी गोदीमें रख उसकी अनुमति प्राप्तकर मृगावतीने दीक्षा ग्रहण की तथा चन्दनबालाकी शिष्या बनी। इनके पुत्र उदयनको कौशाम्बीके राज्यासन पर बिठलाया गया ।
एक बार उपाश्रयमें आते समय विलम्ब होनेसे श्रीचन्दनबालाने उलाहना दिया। उसके निमित्त क्षमापना करते हुए उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। गुरुणी चन्दनबाला उस समय सोयी हुई थीं। गाढ अन्धकारमें उनके समीप होकर सर्प निकला, इसके केवलज्ञानका प्रभाव जानकर मृगावतीने उनका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org