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बत्तीसं ने ओगणसाठ, ति लोकमां चैत्यनो पाठ । अण लाख एकाणुं हजार, त्रणसै बीस ते बिंब जुहार ॥९॥ व्यंतर ज्योतिषीमां वली जेह, शाश्वता जिन वन्दू तेह । ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण, वर्धमान नामे गुण-सेण॥१०॥ संमेतशिखर वंदु जिन बीस, अष्टापद वन्दं चौबीस । विमलाचल ने गढ गिरनार, आबू ऊपर जिनवर जुहार॥११॥ शंखेश्वर केसरियो सार, तारंगे श्रीअजित जुहार । अंतरिक्ख वरकाणो पास, जीराउलो ने थंभण पास ॥१२॥ गाम नगर पुर पाटण जेह, जिनवर-चैत्य नमूं गुणगेह। विहरमाण वन्दूं जिन बीस, सिद्ध अनन्त नमूं निश-दीस ।१३। अढीद्वीपमा जे अणगार, अढार सहस सीलांगना धार । पंच महाव्रत समिति सार, पाले पलावे पंचाचार ॥१४॥ बाह्य अभ्यंतर तप उजमाल, ते मुनि वन्दं गुण-मणिमाल। नितनित उठी कीर्ति करूं, जीव कहे भवसायर तरुं॥१५॥
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शब्दार्थ
सरल है। अर्थ-सडुलना
सब तीर्थों को मैं वन्दन करता हूँ, कारण कि श्रीजिनेश्वर प्रभुके नामसे करोड़ों मङ्गल प्रवृत्त होते हैं। मैं प्रतिदिन श्रीजिनेश्वरके चैत्योंको नमस्कार करता हूँ। (वह इस प्रकार-) पहले देवलोकमें स्थित बत्तीस लाख जिन-भवनोंको मैं वन्दन करता हूँ ॥ १ ॥
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