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पोषध विधिसे लिया, विधिसे पूर्ण किया, विधि करनेमें जो कोई अविधि हुई हो, उन सबका मन, वचन कायासे मिच्छा मि दुकडं ॥
पोषधके अठारह दोषोंमें जो कोई दोष लगा हो तो उन सबका मन, वचन और कायासे मिच्छा मि दुक्कडं ॥ शब्दार्थ
सागरचंदो-सागरचन्द्र राजर्षि । । सलाहणिज्जा-इलाघनीय हैं, कामो-कामदेव श्रावक ।
प्रशंसनीय हैं। चंदडिसो-चन्द्रावतंस राजा। सुलसा-सुलसा नामवाली भगवान सुदंसणो-सुदर्शन सेठ ।
__ महावीरकी परम श्राविका।
आणंद-कामदेवा-आनन्द और धन्नो-धन्य हैं।
कामदेव नामके श्रावक । जेसि-जिनकी।
य-और। पोसह-पडिमा-पोषधकी प्रतिमा
जास-जिनके । . ( नियम-विशेष )।
पसंसइ-प्रशंसा करते हैं। अखंडिआ-खण्डित नहीं हुई, |
भयवं-भगवान् । अखण्डित रही।
दढव्वयत्त-दृढव्रतताको, व्रतकी जीविअंते-जीवनके अन्त तक ।
दृढताकी । वि-भी।
महावीरो-श्रमण भगवान् महावीर । धन्ना-धन्य हैं।
पोसह-विधिसे०-अर्थ स्पष्ट है । अर्थ-सङ्कलना
सागरचन्द्र, कामदेव, चन्द्रावतंस राजा और सुदर्शन सेठ
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