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. ढाई द्वीपमें जो साधु अठारह हजार शीलाङ्ग-रथके धारण करनेवाले हैं, पाँच महाव्रत,पाँच समिति तथा पाँच आचारके स्वयं पालन करनेवाले हैं और दूसरोंसे भी पालन करानेवाले हैं, ऐसे गुणरूपी रत्नोंकी मालाको धारण करनेवाले मुनियोंको मैं वन्दन करता हूँ।। १४ ।।
जीव (श्रीजीवविजयजी महाराज) कहते हैं कि नित्य प्रातःकालमें उठकर इन सबका मैं कीर्तन करता हूँ, (मैं) भवसागर तिर जाऊँगा ॥ १५ ॥ सूत्र-परिचय
__यह सूत्र रात्रिक-प्रतिक्रमणके छः आवश्यक पूर्ण होनेके पश्चात् लोकमें स्थित शाश्वत चैत्य, शाश्वत जिनबिम्ब, वर्तमान तीर्थ, विरहमाण जिन, सिद्ध और साधुओंको वन्दन करने के लिये बोला जाता है; अतः इसे सकलतीर्थ-वन्दना कहते हैं । आरम्भके. शन्दोंसे 'सकल तीरथ' के नामसे भी प्रसिद्ध है । इसकी रचना विक्रमकी अठारहवीं शतीके अन्तिम भागमें उत्पन्न हुए श्रीजीवविजयजी महाराजने की है ।
४७ पोसह-सुत्तं ['पोषध लेनेका' सूत्र
मूल
करेमि मंते ! पोसह, आहार-पोसहं देसओ सव्वओ, सरीर-सत्कार-पोसहं सव्वओ,
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