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२२३ पर सबसे निष्फल होनेसे इनपर शीलभङ्गका मिथ्या आरोप लगाया, जिसके फल-स्वरूप राजाने इनको शूलीपर चढ़ानेका दण्ड दिया; किन्तु शीलके प्रभावसे शूलीका सिंहासन बन गया और इनका जय-जयकार हुआ । तदनन्तर वैराग्य हो जाने से दीक्षा ग्रहण की। .. २२-२३ शाल-महाशाल :-इस नामके दो भाई थे। उनमें परस्पर अत्यन्त प्रीति थी। दोनों भाइयोंने राज्यको तृणवत् मानकर अपने भानजे गांगलिको राज्य सौंपकर दीक्षा ग्रहण की। उसके पश्चात् गांगलि और उसके माता-पिताको भी प्रतिबोध दिया। अन्तमें केवली होकर मोक्ष में गये।
२४ शालिभद्र :-पूर्वभवमें मुनिको क्षीरदान देनेके कारण राजगृही नगरीके अतिधनिक सेठ गोभद्र और भद्रा सेठानीके यहाँ पुत्ररूपमें उत्पन्न हुए। ये अतुल सम्पत्ति तथा उच्चकुलकी ३२ सुन्दरियोंके स्वामी थे। गोभद्र सेठ प्रभु महावीरसे दीक्षा ग्रहण कर, उत्तम चारित्रका पालनकर मृत्युके बाद स्वर्गमें गये और वहाँ से प्रतिदिन अपने पुत्रके लिये दिव्य वस्त्र तथा आभूषणादि भोग-सामग्री पूरी करने लगे। एक समय श्रेणिक महाराजा उनको स्वर्गीय ऋद्धि देखने के लिये आये, जिससे अपने ऊपर भी स्वामी हैं, यह जान वैराग्य को प्राप्त हो, सर्वस्वका परित्यागकर प्रभु महावीरसे दीक्षा ले, उग्र तप कर, आत्म-साधना की।
२५ भद्रबाहुस्वामी :-ये चौदहपूर्व के जानकार थे, आवश्यकादि दस सूत्रोंपर इन्होंने नियुक्ति रची है। तथा इन्हींने सङ्घको विज्ञप्तिसे श्रीस्थूलभद्र को पूर्वोका ज्ञान दिया था।
२६ दशार्णभद्र राजाः-दशाणपुरके राजा थे। इनको नित्य त्रिकाल जिनपूजनका नियम था । एक बार अभिमानपूर्वक अपूर्व समृद्धिसे युक्त हो वीरप्रभुके वन्दनार्थ जाते हुए इन्द्रकी समृद्धि देखकर इनके गर्वका खण्डन हुआ और वैराग्य जागृत होनेसे वहीं दीक्षा ग्रहण की।
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