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ऋद्धिगारव -
अभिमान अर्थात् धन कुटुम्ब आदिका अभिमान और सातागारव
अर्थात् शरीर को सुख उत्पन्न करे ऐसी सामग्रियों
का अभिमान । संज्ञा चार
हैं:--आहार,
भय, मैथुन
और परिग्रह । कषाय चार
१४८
शब्दार्थ
समद्दि - सम्यग्दृष्टिवाला ।
जीवो - जीव, आत्मा । जइ विहु-यद्यपि ।
पावं - पापको, पापमय प्रवृत्तिको । समायरइ - करता है । किचि-थोड़ी, किञ्चित् ।
अप्पो - अल्प |
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हैं— क्रोध,
और लोभ ।
हैं : - मनोदण्ड,
और कायदण्ड ।
हैं : -- मनोगुप्ति
समिति
पाँच
समिति आदि ।
अर्थ- सङ्कलना
१ वन्दन, २ व्रत, ३ शिक्षा, ४ गारव, ५ संज्ञा, ६ कषाय, ७ दण्ड, ८ गुप्ति और ९ समिति- इन नौ विषयों में ( करने योग्य न करनेसे और नहीं करने योग्य करनेसे ) जो अतिचार लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ ||३५||
मूल
{
मान,
सम्मद्दिट्ठी जीवो, जइ वि हु पावं समायरह किंचि । अप्पो सि होइ बंधो, जेण न निद्र्धसं कुणइ || ३६॥
माया
दण्ड तीन
वचनदण्ड
गुप्ति तीन आदि ।
हैं: -- ईर्या
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सि-उसको ।
होइ - होता है । बंधी-बन्ध,
कर्मबन्ध |
जेण - जिससे, कारण कि ।
न नहीं ।
निर्द्धधसं - निर्दयता पूर्वक । कुणइ करता है ।
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