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शब्दार्थयः-जो।
भावयति वा यथायोगम
अथवा मन्त्रयोगके नियमानुसार व-और।
उसकी भावना करता है। एनं-इस स्तवको।
स- वह ।
हि-निश्चय । पठति-पढ़ता है।
शान्तिपदं-सिद्धि पदको, शान्ति सदा-निरन्तर, सदा।
पदको। शृणोति-दूसरेके पापसे सुनता |
यायात्-प्राप्त करे। | सूरिः श्रीमानदेवः च-श्रीमान
देवसूरि भी। अर्थ-सङ्कलना
और जो इस स्तवको सदा भावपूर्वक पढ़ता है, दूसरेके पाससे सुनता है, तथा मन्त्रयोगके नियमानुसार इसकी भावना करता है, वह निश्चय ही शान्तिपदको प्राप्त करता है। सूरि श्रीमानदेव भी शान्तिपदको प्राप्त करें ॥१७॥
( अन्त्यमङ्गल )
[ श्लोक ] [ उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्न-वल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥१८॥ शब्दार्थउपसर्गाः-उपसर्ग, आपत्तियां । । छिद्यन्ते--कट जाती हैं। क्षयं यान्ति-नष्ट होते हैं। | विघ्न वल्लय:-विघ्नरूपी लताएँ।
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