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और केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। तब इन्द्रमहाराजने आकर कहा कि-'आप द्रव्यलिङ्ग धारण करिये, हम दीक्षाका महोत्सव करते हैं।' इन्होंने पञ्चमुष्टि-लोच किया और देवताओंसे दिये गये रजोहरण-पात्र आदि ग्रहण किये । अन्तमें अष्टापद पर्वतपर निर्वाणको प्राप्त हुए।
२ बाहबली :-भरत चक्रवर्तीके छोटे भाई । भगवान् ऋषभदेवने उनको तक्षशिलाका राज्य दिया था। उनका बाहुबल असाधारण था, इस कारण चक्रवर्ती की आज्ञा नहीं मानते थे। इससे भरत चक्रवर्तीने उनपर चढ़ाई की और दृष्टियुद्ध, वाग्युद्ध, बाहुयुद्ध और दण्डयुद्ध किया, जिसमें वे हार गये । अन्तमें भरतने मुष्टिप्रहार किया, उससे बाहुबली कटि ( कमर ) तक जमीनमें घुस गये । उसका प्रत्युत्तर देनेके लिये बाहुबलीने भी मुट्ठी उठायी। यदि यह मुट्ठी भरतपर पड़ी होती तो उनका प्राण निकल जाता; परन्तु इसी समय बाहुबलीकी विचारधारा पलट गयी कि नश्वर राज्यके लिये बड़े भाईकी हत्या करनी उचित नहीं, इससे मुट्ठी वापस नहीं उतारते हुए उससे मस्तकके केशोंका लोच किया और भगवान् ऋषभदेवके पास जानेको तत्पर हुए, किन्तु उसी समय विचार आया कि मुझसे छोटे अठानवे भाई दीक्षा लेकर केवलज्ञानको प्राप्त हुए, वे वहाँ उपस्थित हैं उनको मुझे वन्दन करना पड़ेगा; अतः मैं भी केवलज्ञान प्राप्त करके ही वहाँ जाऊँ। इस विचारसे वहीं कायोत्सर्ग में स्थिर रहे। एक वर्षतक उग्रतप करनेपर भी उनको केवलज्ञान नहीं हुआ, तब प्रभुने उनको प्रतिबोध देने के लिये ब्राह्मी और सुंदरी नामकी साध्वियोंको भेजा, जो कि संसारी अवस्थामें उनकी बहिनें थीं। उनने आकर कहा 'हे भाई ! हाथीकी पीठसे उतरो, हाथीपर चढ़े हुए केवलज्ञान नहीं होता है-वीरा मोरा गज थकी उतरो, गज चढये केवल न होय रे !' यह सुनकर बाहुबली चौंक पड़े। यह बात अभिमानरूपी हाथीको थी। अन्तमें भावना शुद्ध होनेसे उन्हें वहीं केवलज्ञान प्राप्त हुआ। तदनन्तर वे श्रीऋषभदेव भगवान्के पास गये और उनको वन्दन करके केवलियोंकी परिषद्म विराजित हुए।
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