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२१९ लगी, परन्तु उसको कर्म-क्षयका उत्तम मार्ग मानकर वे कुछ भी नहीं बोले । अन्तमें उनके दोनों नेत्र बाहर निकल पड़े। इस असह्य वेदनाको समभावसे सहन करनेके कारण उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ।
१० स्थूलभद्र :-ये नन्दराजाके मन्त्री शकडालके ज्येष्ठ पुत्र थे और यौवनावस्थामें कोशा नामकी गणिकाके मोहमें फँस गये थे। कालान्तरमें वैराग्य प्राप्तकर आचार्य सम्भूतिविजयसे दीक्षा ग्रहण की। श्रीभद्रबाहुस्वामीसे इन्होंने दशपूर्वका ज्ञान प्राप्त किया था। एक समय इनकी चिरपरिचिता कोशा वेश्याके यहाँ गुरुको आज्ञासे चातुर्मास किया और सब प्रकारके प्रलोभनोंका सामना करके अपने संयम-नियममें सम्पूर्ण सफलता प्राप्त करने के साथ ही इन्होंने कोशाको भी संयममें स्थिर रखा। गुरुने इनके कार्यको 'दुष्कर, दुष्कर, दुष्कर' कहा था।
११ वज्रस्वामी :-तुम्बवनमें इनका जन्म हुआ था। पिताका नाम धनगिरि और माताका नाम सुनन्दा था। इनके जन्म लेनेसे पूर्व ही पिता धनगिरिने दीक्षा ग्रहण की। एक बार वे भिक्षाके लिये अपने पहलेवाले घरपर आये, तब बालकके बहुत रोनेसे परेशान होकर माताने वह बालक मुनि ( पिता )को बहोरा दिया। बालकका नाम गुरुने वज्र रखा। कुछ वर्षों के अनन्तर माताने बालकको वापस लेनेके हेतु राजद्वारमें आवेदन किया; किन्तु राजाने बालककी इच्छानुसार न्याय दिया और वज्रस्वामी साधुओंके समुदायमें विद्यमान रहे। बाल्यवयमें ही इन्होंने पठन-पाठन करती हुई आर्याओंके मुखसे श्रवणकर पदानुसारी लब्धिसे ग्यारह अङ्ग याद कर लिये थे। इन्होंने अपने संयमसे प्रसन्न बने हुए मित्र देवोंसे आकाशगामिनी विद्या और वैक्रियलब्धि प्राप्त की थी।
इनके समयमें बारहवर्षी भयङ्कर दुष्काल पड़ा, जिसमें इनके पाँचसौ शिष्य गोचरी नहीं मिलने के कारण अनशन कर कालधर्मको प्राप्त हुए थे। ये आयसिंहगिरिके शिष्य और प्रभु महावीरके तेरहवें पट्टधर थे। दसवें
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