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नमन करनेवालोंको शान्ति करती है, उन श्रीशान्तिनाथ भगवान्को नमस्कार हो, नमस्कार हो ।। १५ ॥
( फलश्रुति ) इति पूर्वसूरि-दर्शित-मन्त्रपद-विदर्भितः स्तवः शान्तेः । सलिलादि-भय-विनाशी, शान्त्यादिकरश्च भक्तिमताम् ।१६। शब्दार्थइति-अन्तमें।
शान्त्यादिकरः-उपद्रवोंकी शान्ति पूर्वसूरि - दर्शित - मन्त्रपद -
-पूर्वक तुष्टि और पुष्टिको विदर्भितः-पूर्वसूरियोंद्वारा गुर्वा
भी करनेवाला। म्नाय-पूर्वक प्रगट किये हुए
च-और। मन्त्रपदोंसे गूंथा हुआ। स्तवः शान्तेः-शान्ति-स्तव। भक्तिमताम्-भक्ति करनेवालोंको, सलिलादि - भय - विनाशी-ज- विधि-पूर्वक अनुष्ठान करने
लादिके भयसे मुक्त करनेवाला । वालोंको। अर्थ-सङ्कलना__ अन्त में यही कहना है कि यह शान्ति-स्तव पूर्वसूरियोंद्वारा गुर्वाम्नायपूर्वक प्रकट किये हुए मन्त्रपदोंसे गूंथा हुआ है और यह विधिपूर्वक अनुष्ठान करनेवालोंको जलादिके भयसे मुक्त करनेवाला तथा उपद्रवोंकी शान्ति-पूर्वक तुष्टि और पुष्टिको भी करनेवाला है।।१६।। मूलयश्चैनं पठति सदा, शृणोति भावयति वा यथायोगम् । स हि शान्तिपदं यायात, सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥१७॥
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