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सरस - पियंगु - वण्णु - नवीन | सोहइ - शोभित होता है। (ताजा) प्रियङ्गुलता जैसे वर्ण- फणि - मणि -किरणालिद्धउ - वाले।
नागमणिके किरणोंसे युक्त । सरस-ताजा, नवीन । पियंगु- फणि-नाग। मणि-मस्तकपर
-एक प्रकारकी वनस्पति, स्थित मणि ।
प्रियङ्गु । वण्णु-वर्ण, रंग । | नं-मानो। गय-गामिउ-हाथोके समान नव-जलहर-नवीन मेघ । गतिवाले।
नव-नवीन । जलहर-मेघ, बादल । जयउ-जयको प्राप्त हों !
तडिल्लय-लंछिउ-बिजलीसे युक्त पासु-पार्श्वनाथ ।
तडिल्लय-विजली। लंछिउ-युक्त, भवणत्तय-सामिउ-तीनों भुवनके | सहित । स्वामी।
सो-वह, वे। जसु-जिनके।
जिणु-जिन । तणु-कंति-कडप्प - शरीरका पासु-श्रीपार्श्वनाथ । तेजोमण्डल ।
पयच्छउ-प्रदान करें। सिणिद्धउ-स्निग्ध, देदीप्यमान ।। | वंछिउ-वाञ्छित, मनोवाञ्छित ।
अर्थ-सङ्कलना
चार कषायरूपी शत्रु-योद्धाओंका नाश करनेवाले, कठिनाईसे जीते जाने वाले ऐसे कामदेवके बाणोंको तोड़देनेवाले, नवीन प्रियंगुलताके समान वर्णवाले, हाथीके समान गतिवाले, तीनों भुवनके स्वामी श्रीपार्श्वनाथ जयको प्राप्त हों ॥१॥
जिनके शरीरका तेजोमण्डल देदीप्यमान है, जो नागमणिकी किरणोंसे युक्त और जो मानो बिजलीसे युक्त नवीन मेघ हों, ऐसे शोभित हैं वे श्रीपार्वजिन मनोवाञ्छित फल प्रदान करें ॥२॥
प्र०-१४
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