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शब्दार्थजावंति--जिनके।
अ-भो। चेइआइं-चैत्य, जिनबिम्ब । उडढे-ऊर्ध्वलोकमें।
सव्वाइं ताई-उन सबको। अ-और।
वंदे-मैं वन्दन करता हूँ। अहे-अधोलोक में।
इह-यहाँ। अ-और। तिरिअलोए-तिर्यग्लोकमें, मनु- संतो-रहता हुआ । ___ष्यलोक में।
| तत्थ संताइं-वहाँ रहे हुओंको। अर्थ-सङ्कलना
ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मनुष्यलोकमें जितने भी जिनबिंब हों, उन सबको यहाँ रहता हुआ,वहाँ रहे हुओंको मैं वन्दन करता हूँ॥४४॥
मूल
जावंत के वि साहू, भरहेरवय-महाविदेहे अ । सव्वेसिंतेसिंपणओ, तिविहेण तिदंड-विरयाणं ॥४॥
शब्दार्थ
तिविहेण-करना, कराना, और
अनुमोदन करना इन तीन प्रकारों से।
जावंत के वि-जो कोई भी। साहू-साधु । भरहेरवय महाविदेहे-भरत, ___ ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में। अ-और। सवेसि तेसि-उन सबको। पणओ-नमा हुआ हूँ, नमन
करता हूँ।
तिदंड-विरयाणं-तीन दण्डसे
विरत; मन, वचन और कायासे पाप प्रवृत्ति नहीं करनेवाले ।
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