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शब्दार्थसर्वामर-सुसमह -स्वामिक- । भुवन-जन-पालनोद्यततमाय
सम्पूजिताय--सर्व देवसमूहके विश्वके लोगोंका रक्षण करने में स्वामियोंद्वारा विशिष्ट प्रकारसे तत्पर । पूजित ।
सततं-सदा । निजिताय-किसीसे नहीं जीते नमः-नमस्कार हो। गये, अजित ।
तस्मै-उन श्री शान्तिनाथको । अर्थ-सङ्कलना
(११) सर्व देवसमहके स्वामियोंद्वारा विशिष्ट प्रकारसे पूजित (१२) अजित और (१३) विश्वके लोगोंका रक्षण करने में तत्पर ऐसे श्रीशान्तिनाथको सदा नमस्कार हो ।।४।। मूल
सर्व-दुरितौध-नाशनकराय सर्वाशिव-प्रशमनाय ।
दुष्ट-ग्रह-भूत-पिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय ॥५॥ शब्दार्थसर्व-दुरितौघ-नाशनकराय- दृष्ट – ग्रह - भूत - पिशाच -
समग्र भय-समूहोंका नाश शाकिनीनां -प्रमथनायकरनेवाले।
दुष्टग्रह, भूत, पिशाच, शाकिसर्वाशिव-प्रशमनाय-सर्व उप- नियोंद्वारा उत्पादित पीड़ाओं
द्रवों का शमन करनेवाले। का अत्यन्त नाश करनेवाले । अर्थ-सङ्कलना
(१४) समग्रभय-समूहोंका नाश करनेवाले, (१५) सर्व उपद्रवोंका
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