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शब्दार्थसर्वस्य-सकल।
साधूनां-साधुओंको,श्रमणसङ्घको। अपि च और।
च-उसी प्रकार ।
सदा-निरन्तर, सदा । सङ्घस्य-सङ्घको। भद्र-कल्याण-मङ्गल-प्रददे !
शिव-सुतुष्टि-पुष्टि-प्रदे !-निरु
पद्रवी वातावरण, तुष्टि और " -भद्र, कल्याण और मङ्गल पुष्टि देनेवाली। देनेवाली !
| जीयाः-आपकी जय हो । अर्थ-सङ्कलना___ सकलसङ्घको भद्र, कल्याण और मङ्गल देनेवाली, उसी प्रकार श्रमण-सङ्घको सदा निरुपद्रवी वातावरण, तुष्टि और पुष्टि देनेवाली हे देवी! आपकी जय हो ।।८।। मूलभव्यानां कृतसिद्धे!, निवृति-निर्वाण-जननि ! सत्त्वानाम् । अभय-प्रदान-निरते ! नमोऽस्तु स्वस्तिप्रदे ! तुभ्यम् ॥९॥ शब्दार्थभव्यानां-भव्य उपासकोंको। सत्त्वानाम-सत्त्वशाली उपासकृतसिद्ध !- हे कृतसिद्धा, हे
कोंको। सिद्धिदायिनी!
अभय-प्रदान-निरते!-अभस
दान करने में तत्पर, निर्भयता निति-निर्वाण-जननि !
देनेवाली ! शान्ति तथा परम-प्रमोदको
| नमः अस्तु-नमस्कार हो ! . देने में कारणभूत, शान्ति तथा | स्वस्तिप्रदे!-क्षेम करनेवाली ! परम प्रमोद देनेवाली।
| तुभ्यम्-आपके लिये, आपको।
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