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उत्तर–तीन । उनमें एकसे पाँच तकके व्रतोंको अणुव्रत कहते हैं, छःसे
आठ तकके व्रतोंको गुणव्रत कहते हैं और नौसे बारहतकके व्रतोंको शिक्षाव्रत कहते हैं। इन बारह व्रतोंमें पहले पाँच मूलव्रत हैं और
बादके सात उत्तरव्रत हैं। प्रश्न-स्थूल-प्राणातिपात-विरमण-व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-कुछ अंशोंमें हिंसा करनेसे रुकनेका व्रत । इस व्रतको लेनेवाला
किसी भी त्रस्त जीवकी सङ्कल्पपूर्वक निरपेक्ष हिंसा नहीं करे । प्रश्न-इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर–पाँचः-वध, बन्ध, छविच्छेद, अतिभार और भक्तपान-विच्छेद । + प्रश्न-स्थूल-मृषावाद-विरमण-व्रतका अर्थ क्या है ? । उत्तर-कुछ अंशों में झूठ बोलनेसे रुकनेका ( विरत होनेका ) व्रत ।
इस व्रतको लेनेवाला कन्या, गाय, भूमि, स्थापत्य अथवा साक्षीके
सम्बन्धमें बड़ा झूठ न बोले । प्रश्न-इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर–पाँच:-सहसाऽभ्याख्यान, रहोऽभ्याख्यान, स्वदारमन्त्रभेद, मृषो___ पदेश और कूटलेख। प्रश्न-स्थूल-अदत्तादान-विरमण-व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-कुछ अंशों में अदृष्टवस्तु लेनेसे विरत होनेका व्रत। इस व्रतको
लेनेवाला डाका डालकर, सेंध लगाकर, गाँठ खोलकर अथवा तालेमें
कुंजी आदि लगाकर किसीकी बिना दी हुई वस्तु नहीं ले । प्रश्न-इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर-पाँचः-स्तेनाहृत-प्रयोग, स्तेन-प्रयोग, तत्प्रतिरूप, विरुद्धगमन और
कूटतुल-कूटमान ।
+ अतिचारोंके नाम विषयको स्पष्ट समझनेके लिये दिये हैं, इनके अर्थ प्रत्येक गाथाके पश्चात् आये हुए शब्दार्थसे जानने ।
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