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एक प्रकारका ऊनका वस्त्र । आचार और चारित्र आदि पडिग्गह-पातरा, पात्र । ( भाव-लिङ्ग) को धारण
धारा-धारण करनेवाले । न करनेवाले। पंचमहव्वय-धारा-पाँच महा- ते-उन ।
व्रतोंको धारण करनेवाले। सब्वे-सवको । अठारस - सहस्स-सीलंग - । सिरसा-सिरसे, कायासे ।
धारा-अठारह हजार शीलके मणसा-मनसे ।
अङ्गोंको धारण करनेवाले । मत्थएण-वंदामि-वन्दन करता अक्खयायार - चरित्ता - अक्षत
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अर्थ-सङ्कलना
ढाई द्वीपमें आयी हुई पन्द्रह कर्मभूमियोंमें जो कोई साधु रजोहरण, गुच्छ और ( काष्ठ ) पात्र ( आदि द्रव्यलिङ्ग) तथा पाँच महाव्रत, अठारह हजार शीलाङ्ग, अक्षत आचार और चारित्र आदि ( भाव-लिङ्ग ) के धारण करनेवाले हों, उन सबको काया तथा मनसे वन्दन करता हूँ ।। सूत्र-परिचय
इस सूत्रसे ढाई द्वीपमें स्थित साधु-मुनिराजोंको वन्दन किया जाता है, इसलिये यह ‘साहु-बंदण-सुत्त' कहलाता है ।
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