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कलङ्क-निर्मुक्तम्- कलङ्कसे रहित । अमुक्त पूर्णतं - पूर्णता नहीं त्यागने
वालेको ।
कुतर्क - राहु- ग्रसनं कुतर्क रूपी राहुको सनेवालेको । सदोदयम्-कभी अस्त नहीं होने
वाला, सदा उदयको प्राप्त । अपूर्वचन्द्र - नवीन प्रकारके चन्द्रमाको, अपूर्वचन्द्रकी ।
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जिनचन्द्र - भाषितं - जिनचन्द्रकी वाणीसे बना हुआ ।
दिनागमे - प्रातः कालमें
नौमि - स्तवन
करता हूँ, स्तुति
करता हूँ ।
बुधैः - पण्डितों |
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नमस्कृतम्-नमस्कार
उसको ।
अर्थ- सडुलना
विशाल नेत्ररूपी पत्रवाला, देदीप्यमान दाँतोंकी किरणरूप केसरवाला, श्रीवीरजिनेश्वरका मुखरूपी कमल प्रातः काल में तुमको पवित्र करे ||१||
किया है
जिनकी स्नान - क्रिया करनेसे अतिहर्षसे मत्त बने हुए देवेन्द्र स्वर्ग के सुखको तृणमात्र भी नहीं गिनते हैं, वे जिनेन्द्र प्रातः कालमें शिव-सुखके लिये हों ॥२॥
जो कलङ्कसे रहित हैं, पूर्णताका त्याग नहीं करते, कुतर्करूपी राहुको डस लेते हैं, सदा उदयको प्राप्त रहते हैं, ऐसे जिनचन्द्रको वाणी से जो बना हुआ है और पण्डितों ने जिसे नमस्कार किया है, आगमरूपी अपूर्वचन्द्रकी मैं प्रातः कालमें स्तुति करता हूँ ||३||
उस
सूत्र-परिचय
रात्रिक प्रतिक्रमण में ६ आवश्यक पूरे होने के बाद मङ्गल स्तुतिके
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