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मज्झ-मेरा। विणय-परिहीणं-विनयरहित । सुहुमं वा बायरं वा-सूक्ष्म
अथवा स्थूल। अर्थ-सङ्कलना
तुब्भे जाणह-आप जानते हों। अहं न जाणामि-मैं नहीं जानता। तस्स मिच्छा मि दुक्कडं
पूर्ववत्०
हे भगवन् ! इच्छा-पूर्वक आज्ञा प्रदान करो। मैं दिन (रात्रि)के अन्दर किये हुए अपराधोंकी क्षमा माँगनेके लिये उपस्थित हुआ हूँ।
[ गुरु ]-क्षमा माँगो। [ शिष्य ]-चाहता हूँ ! दिवस-सम्बन्धी अपराधोंकी क्षमा
माँगता हूँ। आहारमें, पानीमें, विनयमें, वैयावृत्त्यमें, बोलने में, बातचीत करने में, ऊँचा आसन रखने में, समान आसन रखने में, बीचमें बोलनेमें, गुरुके ऊपर होकर बोलनेमें जो कुछ अप्रीति अथवा विशेष अप्रीतिकारक किया हो, तथा मुझसे सूक्ष्म अथवा स्थूल ( अल्प या अधिक ) जो कोई विनय-रहित वर्तन हुआ हो; आप जानते हों और मैं नहीं जानता, ( ऐसा कोई अपराध हुआ हो; ) तत्सम्बन्धी मेरे सब पाप मिथ्या हों। सूत्र-परिचय
इस सूत्रद्वारा शिष्य गुरुके प्रति हुए छोटे-बड़े अपराधों की क्षमा माँगता है, इसलिये ये 'गुरुखामणा-सुत्त' कहलाता है। पहले शब्दसे इसे 'अब्भुट्टिओ' सूत्र भी कहते हैं ।
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