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अर्थ- सङ्कलना
श्रुतदेव की आराधना के लिये मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । जिनकी प्रवचनरूपी समुद्रके विषयमें सदा भक्ति है, उनके ज्ञानावरणीयकर्मके समूहका पूज्य श्रुतदेवी क्षय करो ॥ १ ॥
सूत्र-परिचय-
यह स्तुति श्रुतदेवताकी है और इसको पुरुष ही बोलते हैं ।
शब्दार्थ
१७६
मूल
[ खित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं । अन्नत्थ० ] [ गाहा ] जीसे खित्ते साहू, दंसण - नाणेहिं चरण - सहिएहिं । साहंति मुक्ख - मग्गं, सा देवी हरउ दुरिआई || १||
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३६ खित्तदेवया - थुइ [ क्षेत्र देवता-स्तुति ]
[ खित्तदेवयाए - क्षेत्रदेवताकी आराधनाके लिये । करेमि काउस्सग्गं-मैं
त्सर्ग करता हूँ । ]
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कायो
जीसे- जिनके ।
खित्ते - क्षेत्र में ।
साहू - साधुगण ।
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