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प्रश्न-परदारागमन-विरमण-व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-दूसरेकी विवाहित स्त्रीके साथ सङ्ग करनेसे विरत होनेका व्रत ।
इस व्रतको लेनेवाला अपनी परिणीत-पत्नीसे सन्तुष्ट रहे। प्रश्न-इस व्रत में कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर–पाँच:--अपरिगृहीतागमन, इत्वरगृहीतागमन, अनङ्गक्रीडा, पर
विवाह-करण और तीव्र-अनुराग । प्रश्न-परिग्रह-परिमाण-व्रतका अर्थ क्या है। उत्तर-धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, चाँदी, सोना एवं अन्य धातु, द्विपद
और चतुष्पदके सङ्ग्रहको परिग्रह कहते हैं । उसका माप करना
मर्यादा करनी वह परिग्रह-परिमाण-व्रत । प्रश्न-इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर-पांच:-धन-धान्य-प्रमाणातिक्रम, क्षेत्र-वास्तु-प्रमाणातिक्रम, रुप्य
सुवर्ण-प्रमाणातिक्रम, कुप्य-प्रमाणातिक्रम और द्विपद-चतुष्पद
प्रमाणातिक्रम। प्रश्न-दिक्-परिमाण-व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-प्रत्येक दिशामें कुछ अन्तरसे अधिक नहीं जाना ऐसा व्रत । प्रश्न-इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर--पाँच:-ऊर्ध्वदिक्-प्रमाणातिक्रम, अधोदिक्-प्रमाणातिक्रम, तिर्यग- .
दिक्-प्रमाणातिक्रम, क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तर्धान । प्रश्न-उपभोग-परिभोग-परिमाण-व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-जो वस्तु एकबार भोगी जाय वह उपभोग और बारबार भोगी
जाय वह परिभोग । उसका माप निश्चित करना, वह उपभोगपरिभोग-परिमाण-व्रत। इस व्रतमें बहुत आरम्भ-समारम्भवाले व्यापार अर्थात् कर्म भी छोड़ दिये जाते हैं।
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