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१५३ है, वे सब प्रतिक्रमण करते समय याद नहीं आयी हों, उनको यहाँ मैं निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ॥ ४२ ।।
मल
तस्स धम्मस्स केवलि-पन्नत्तस्सअब्भुडिओ मि आराहणाए विरओ मि विराहणाए ।
तिविहेण पडिकतो. वंदामि जिणे चउव्वीसं ॥४३॥ शब्दार्थतस्स धम्मस्स-उस धर्मकी, विराहणाए-विराधना से । उस श्रावक-धर्मकी। तिविहेण-तीन प्रकार से; मन,
__वचन और काय के द्वारा । केवलि-पन्नत्तस्स-केवली भग
पडिक्कतो- प्रतिक्रमण करता वन्तोंद्वारा प्ररूपित ।
हुआ, सम्पूर्ण दोषोंसे निवृत्त अब्भट्रिओ मि-खड़ा हुआ हूँ, होता हुआ। तत्पर हुआ हूँ।
वंदामि-मैं वन्दना करता हूँ। आराहणाए-आराधनाके लिए। जिणे-जिनोंको । विरओ मि-मैं विरत हुआ हूँ। चउव्वीसं-चौबीसों। अर्थ-सङ्कलना
अब मैं केवली भगवन्तोंद्वारा प्ररूपित ( और गुरुके निकट स्वीकृत ) श्रावक-धर्मकी आराधनाके लिए तत्पर हुआ हूँ और विराधनासे विरत हुआ हूँ, अतः मन, वचन और काय के द्वारा सम्पूर्ण दोषोंसे निवृत्त होता हुआ चौबीसों जिनोंको मैं वन्दन करता हूँ॥४३।। मूल
जावंति चेइआई, उड्ढे अ अहे अ तिरिअलोए अ । सव्वाइं ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई ॥४४॥
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