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(व्रत-कर्म करनेवाला गुणवान्) सुश्रावक अपने पापोंकी आलोचना
और निन्दा करता हुआ राग और द्वेषसे उपाजित आठ प्रकारके कर्मको शीघ्र नष्ट करता है ॥३८--३९।। मूल
[ गाहा ] कय-पावो वि मणुस्सो, आलोइअनिदिअ गुरु-सगासे ।
होइ अइरेग-लहुओ, ओहरिअ-भरु व्व भारवहो॥४०॥ शब्दार्थकय-पावो-कृत-पाप, पाप करने । होइ-होता है, हो जाता है। वाला।
अइरेग-लहुओ-बहुत हलका । वि-भी।
ओहरिअ-भरु व्व-भार उतारे मणुस्सो-मनुष्य । आलोइअ निदिअ गुरु-स
हुएकी तरह, जिसने भार गासे-गुरुके समक्ष अपने
(बोझा) उतार दिया है उस पापोंकी आलोचना तथा निन्दा
के समान । करके।
भारवहो-भारवाहक, मजदूर । अर्थ-सङ्कलना
पाप करनेवाला मनुष्य भी गुरुके समक्ष अपने पापोंकी आलोचना तथा निन्दा करके भार उतारे हुए मजदूरको तरह बहुत हलका हो जाता है ।। ४०॥ मूल
आवस्सएण एएण, सावओ जइ वि बहुरओ होई । दुक्खाणमंतकिरिअं, काही अचिरेण कालेण ॥४१॥
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