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[ गाहा]
एवमहं आलोइअ, निदिअ गरहिअ दुगंछिउं सम्म ।
तिविहेण पडिकतो, वंदामि जिणे चउव्वीसं ॥५०॥ शब्दार्थएवमहं--इस तरह मैं । दुगंछिउं सम्म--अरुचि व्यक्त आलोइअ-आलोचना करके ।
करके, जुगुप्सा करके।
| सम्म-सम्यक प्रकारसे । निदिअ-निन्दा करके । तिविहेण-पडिक्कतो, वंदामि गरहिअ--गर्दा करके।
जिणे चउव्वीसं-पूर्ववत्० अर्थ-सङ्कलना
इस तरह सम्यक् प्रकारसे अतिचारोंकी आलोचना, निन्दा, गर्दा और जुगुप्सा करके, मैं मन, वचन और कायासे सम्पूर्ण दोषोंकी निवृत्तिपूर्वक चौबीसों जिनेश्वरोंको वन्दन करता हूँ॥ ५० ॥ सूत्र-परिचय
इस सूत्रसे श्रावक धर्ममें लगे हुए अतिचारोंका प्रतिक्रमण किया जाता है, इसलिये यह श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र (सावग--पडिक्कमण--सुत्त) कहलाता है। इसका पहला शब्द 'वंदित्तु' है, इसलिये यह 'वंदित्तु-- सूत्र' भी कहलाता है।
श्रावक-धर्म प्रश्न-श्रावक किसे कहते हैं ? उत्तर-जो सुने उसे श्रावक कहते हैं। प्रश्न-क्या सुनने से श्रावक कहते हैं ?
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