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१५२ शब्दार्थआवस्सएण एएण-इस आव- होइ-होता है । श्यक-द्वारा।
दुक्खाणमंतकिरिअं-दुःखोंकी सावओ--श्रावक ।
अन्तक्रिया, दुःखोंका अन्त । जइ वि--यद्यपि। बहुरओ-बहुत रजवाला, बहुत
| काही--करेगा, करता है। कर्मवाला।
अचिरेण कालेण--अल्प समयमें । अर्थ-सङ्कलना
यद्यपि श्रावक ( सावध आरम्भोंके कारण ) बहुत कर्मवाला. होता है, तथापि इस आवश्यक-द्वारा अल्प समयमें दुःखोंका अन्त करता है ।। ४१ ॥
आलोयणा बहुविहा, न य सभरिआ पडिक्कमण-काले ।
मूलगुण-उत्तरगुणे, तं निंदे तं च गरिहामि ॥४२॥ शब्दार्थआलोयणा--दोषोंको सँभालनेकी पडिक्कमण-काले -- प्रतिक्रमणके
क्रिया, आलोचना । ___ समयमें, प्रतिक्रमण करते समय । बहविहा--अनेक प्रकारकी।
मूलगुण -- उत्तरगुणे -- मूलगुण न-नहीं।
और उत्तरगुण सम्बन्धी । य-और। संभरिआ-याद आयीं। तं निदे तं च गरिहामि-पूर्ववत् । अर्थ-सङ्कलना
मूलगुण और उत्तरगुण सम्बन्धी आलोचना बहुत प्रकारकी होती
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