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वा-अथवा।
दस-दस । उज्जितसेल-सिहरे-गिरनार दो-दो। पर्वतके शिखरपर।
अ-और। दिक्खा-दीक्षा।
वंदिआ-वन्दन किये हुए। नाणं-केवलज्ञान ।
जिणवरा-जिनेश्वर । निसीहिआ-निर्वाण।
चउव्वीसं-चौबीसों। जस्स-जिनका। तं-उन ।
परमट्ट-निटिअट्टा-परमार्थसे कृतधम्मचक्कट्टि-धर्मचक्रवर्ती ।।
कृत्य, मोक्ष-सुखको प्राप्त अरिटनेमि-श्रीअरिष्टनेमि भग
किये हुए। वान्के लिये।
सिद्धा-सिद्ध। नमसामि-मैं नमस्कार करता हूँ। सिद्धि-सिद्धि । चत्तारि-चार।
मम-मुझे। अट्ठ-आठ।
दिसंतु-प्रदान करें।
अर्थ-सङ्कलना
सिद्धिपदको प्राप्त किये हुए, सर्वज्ञ, संसारका पार प्राप्त किये हुए, परम्परासे सिद्ध बने हुए और लोकके अग्रभागपर गये हुए, ऐसे सर्व सिद्ध भगवन्तोंके लिये सदा नमस्कार हो ॥ १ ॥
जो देवोंके भी देव हैं, जिनको देव अञ्जलि-पूर्वक नमन करते हैं, तथा जो इन्द्रोंसे भी पूजित हैं, उन श्रीमहावीर-स्वामीको मैं मस्तक झुकाकर वन्दन करता हूँ।। २॥
जिनेश्वरोंमें उत्तम ऐसे श्रीमहावीर प्रभुको किया हुआ एक भी नमस्कार पुरुष अथवा नारीको संसाररूप सागरसे तिरा देता है।।३॥
जिनके दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण गिरनार पर्वतके शिखर
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