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१४४ शब्दार्थसच्चित्ते निक्खिवणे-सचित्त चेव-इसी प्रकार ।
निक्षेपमें; सचित्त वस्तु डालनेमें। कालाइक्कम-दाणे - कालातिक्रम पिहिणे-सचित्त पिधानमें, सचित्त दानमें, काल बीत जानेपर वस्तु ढकने में।
दान देनेके विषयमें। ववएस-मच्छरे-परव्यपदेश और चउत्थ - सिक्खावए - चौथे मात्सर्यमें, बहाना करने में ___ शिक्षाव्रतके प्रतिक्रमण-प्रसङ्गमें ।
और ईर्षा करने में। | निदे-मैं निन्दा करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना
सचित्त-निक्षेपण, सचित्त-पिधान, पर-व्यपदेश, मात्सर्य और कालातिक्रम-दान इन पाँच अतिचारोंकी मैं चौथे शिक्षाव्रतके प्रतिक्रमण-प्रसङ्गमें निन्दा करता हूँ ॥ ३० ॥ मूल
सुहिए सु अ दुहिएसु अ, जा मे अस्संजएसु अणुकंपा । रागेण व दोसेण व, तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ३१ ।। शब्दार्थसुहिएसु-सुहितोंके विषयमें । वर न हो वे दुःखित कह
जो साधु ज्ञान, दर्शन और लाते हैं। चारित्रमें रत हो वह सुहित अ-और। कहलाता है।
जा-जो।
मे-मझसे । अ-और।
अस्संजएसु-अस्वयतोंके विषय में। दुहिएसु-दुःखितोंके विषयमें। अणुकंपा-अनुकम्पा भक्ति । जिस साधुके पास वस्त्र, पात्र रागेण-रागसे। आदि उपाधि (सामग्री) बरा- व-और ।
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