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सामाइय वितहकए-सामायिक । पढमे सिक्खावए-पहले शिक्षा
वितथ किया हो, सामायिककी व्रतके विषयमें। विराधना की हो । | निदे-मैं निन्दा करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना
पहले शिक्षावतमें सामायिकको निष्फल करनेवाले मनो-दुष्प्रणिधान, वचन-दुष्प्रणिधान, काय-दुष्प्रणिधान, अनवस्थान और स्मृतिविहीनत्व नामके पाँच अतिचारोंकी मैं निन्दा करता हूँ॥ २७ ॥ मूल
आणवणे पेसवणे, सद्दे रूवे अ पुग्गल--क्खेवे । देसावगासिअम्मी, बीए सिक्खावए निंदे ।। २८॥ शब्दार्थआणवणे-आनयन-प्रयोगके विषय- | अ-और ।
में, बाहरसे वस्तु मँगानेसे ।। पुग्गल-क्खेवे-पुद्गलके क्षेपसे, पेसवणे-प्रेष्य-प्रयोगके विषयमें,
वस्तु फेंकनेसे। वस्तु बाहर भेजनेसे। सद्द-शब्दानुपातके विषयमें, देसावगासिअम्मी-देशावकाशिक
आवाज करके उपस्थिति बत- व्रतके विषयमें। लानेसे। रूवे-रूपानुपातके विषयमें, जाली
| बीए सिक्खावए-दूसरे शिक्षा(झरोखे) आदि स्थानपर आकर
| व्रतमें। __ अपनी उपस्थिति बतलानेसे । । निदे-मैं निन्दा करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना
देशावकाशिक नामके दूसरे शिक्षा-व्रतमें १ आनयन-प्रयोग, २ प्रेष्य-प्रयोग, ३ शब्दानुपात, ४ रूपानुपात और ५ पुद्गल-- क्षेपद्वारा जो अतिचार लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ॥२८॥
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