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शब्दार्थ
ण्हाणुव्वट्टण - वन्नग-विलेवणे विलेवण-लेपन करना ।
-स्नान, उद्वर्तन, वर्णक और । सह-रूव-रस-गंधे-शब्द, रूप, विलेपनके विषयमें।
- रस और गन्धके विषयमें । ण्हाण-स्नान करना ।
वत्थासण -- आभरणे-वस्त्र, उबट्टण-मैल निकालनेके लिये उबटन आदि पदार्थ लगाना ।
आसन और आभरणके वन्नग-रङ्ग लगाना तथा चित्र
विषयमें। कारी करना ।
पडिक्कमे देसिअंसव्वं पूर्ववत्० अर्थ-सङ्कलना
१ स्नान, २ उद्वर्तन, ३ वर्णक, ४ विलेपन, ५ शब्द, ६ रूप, ७ रस, ८ गन्ध, ९ वस्त्र, १० आसन और ११ आभरणके विषयमें सेवित अनर्थदण्डसे दिवस-सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ।। २५ ॥
मूल
कंदप्पे कुक्कुइए, मोहरि--अहिगरण--भोग--अइरित्ते । दंडम्मि अणट्ठाए, तइअम्मि गुणव्वए निंदे ॥ २६ ॥ शब्दार्थकंदप्ये-कन्दर्पके विषयमें, काम- ! अइरिते-मौखर्य संयुक्ताधिकरण विकारके विषयमें।
और भोगातिरिक्तताके कारण । कुक्कुइए-अनुचित चेष्टाके विषय- मौखर्य-अधिक बोलना, आव- में, कौत्कुच्यके विषयमें ।
श्यकतासे अधिक बोलना । मोहरि - अहिगरण – भोग - संयुक्ताधिकरण-तैयार किया
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