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मूल
संथारुच्चारविही-पमाय तह चेव भोअणाभोए । पोसह--विहि--विवरीए, तइए सिक्खावए निंदे ॥२९॥ शब्दार्थसंथारुच्चारविही - पमाय - तह-तथा । संथारा और उच्चारकी विधिमें
चेव-इसी तरह। हुए प्रमादके कारण; संथारा
भोअणाभोए-भोजनादिकी चिऔर उच्चार-प्रस्रवण-भूमिकी
न्ताद्वारा। प्रतिलेखना और प्रमार्जनामें प्रमाद होनेसे ।
पोसह-विहि-विवरीए - पोषध संथारेकी विधि-घास, कम्बल विधिको विपरीतता। अथवा विस्तर आदि पर सोते रहनेकी विधि, उच्चार
तइए सिक्खावए - तीसरे को विधि-बड़ी नीति और
| शिक्षाव्रतमें। लघुनीति परठवनेकी विधि । निदे-मैं निन्दा करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना
संथारा और उच्चार-प्रस्रवण-भूमिकी प्रतिलेखना और प्रमाणनामें प्रमाद होनेसे तथा भोजनादिकी चिन्ताद्वारा पौषधोपवास नामके तीसरे शिक्षाव्रतमें जो कोई विपरीतता हुई हो ( अतिचारोंका सेवन हुआ हो ) उसकी मैं निन्दा करता हूँ ।। २९ ॥
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मूल
सचित्त निक्खिवणे, पिहिणे ववएस--मच्छरे चेव । कालाइक्कम-दाणे--चउत्थ सिक्खावए निंदे ॥ ३० ॥
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