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११० (६) शरीरादिका सङ्गोपन करना; अर्थात् अङ्गोपाङ्ग सङ्कोच
पूर्वक रखना। छह प्रकारका अभ्यन्तर तप(१) दोषोंकी शुद्धिके लिए शास्त्रोक्त प्रायश्चित्त लेना। (२) ज्ञानादि मोक्षके साधनोंकी यथाविधि आराधना करना । (३) सङ्घ, श्रमण आदिका वैयावृत्त्य करना। (४) शास्त्रका स्वाध्याय करना । (५) शुभ ध्यान धरना।
(६) कषाय आदिका त्याग करना। प्रश्न-वीर्याचार कितने प्रकारका है ? उत्तर-तोन प्रकारका । मन, वचन और कायकी शक्ति बिना छिपाये
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपके आचारोंका पालन करनेके लिये
पुरुषार्थ करना। प्रश्न-पञ्चाचारसे क्या होता है ? उत्तर-पञ्चाचारसे धर्मको आराधना सुन्दर रीतिसे होती है ।
२९ सुगुरु-वंदरण-सुत्तं
[ सुगुरु-वन्दन-सूत्र ] मूलइच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, अणुजाणह मे मिउग्गहं,
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