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मुझे आपकी मर्यादितभूमिके समीप आनेकी आज्ञा प्रदान करो।+
सर्व अशुभ व्यापारोंके त्याग-पूर्वक आपके चरणोंको अपनी कायासे स्पर्श करता हूँ। उससे जो कोई खेद-कष्ट हुआ हो उसके लिए मुझे क्षमा प्रदान करें। आपका दिन अल्प-खेदसे सुखपूर्वक व्यतीत हुआ है ?*
आपको संयम-यात्रा चल रही है ?x आपकी इन्द्रियाँ और कषाय उपघात रहित वर्तन करते हैं ? हे क्षमाश्रमण ! दिनमें किये हुए अपराधोंकी क्षमा माँगता हूँ।
आवश्यक-क्रियाके लिये अब मैं अवग्रहके बाहर जाता हूँ। दिनमें आप क्षमाश्रमणकी तैंतीसमेंसे कोई भी आशातना की हो तो उससे मैं वापस लौटता हूँ। और जो कोई अतिचार मिथ्याभावके कारण हुई आशातनासे हुआ हो, मन, वचन और कायाकी दुष्टप्रवृत्तिसे हुई आशातनासे हुआ हो, क्रोध, मान, माया और लोभकी वृत्तिसे हुई आशातनासे हुआ हो अथवा सर्व कालसम्बन्धी, सर्व प्रकारके मिथ्या उपचारोंसे, सर्व प्रकारके धर्मके अति
+ यहाँ गुरु कहें- अणुजाणामि'-आज्ञा देता हूँ। तब शिष्य कहे* यहाँ गुरु कहें-'तह त्ति' ऐसा ही है । तब शिष्य कहेx यहाँ गुरु कहें-'तुब्भंपि वट्टए ?' तुम्हारी भी चल रही है ?
यहाँ गुरु कहें-'एवं' ऐसा ही है । तब शिष्य कहे
= यहाँ गुरु कहें-'अहमपि खामेमि तुब्भं'-मैं भी तुमसे क्षमा चाहता हूँ। फिर शिष्य कहे
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