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अर्थ-सङ्कलना
(१) प्रायश्चित्त, (२) विनय, (३) वैयावृत्य (४) स्वाध्याय, (५) ध्यान और (६) उत्सर्ग, ( त्याग ) ये अभ्यन्यर तप हैं ॥७॥ मूलअणिगृहिअ-बल-वीरिओ, परकमइ जो जहुत्तमाउत्तो । जुंजइ अ जहाथाम, नायव्यो वीरिआयारो ॥८॥ शब्दार्थअणिगहिअ-बल-वोरिओ- आउत्तो-उसके पालनमें । बाह्य-और अभ्यन्तर सामर्थ्यको | जुजइ-जोड़ता है। न छिपाते हुए।
अ-और। परक्कमइ-पराक्रम करता है ।।
जहाथाम-यथाशक्ति अपनी जो-जो। जहत्तं-उपर्युक्त ज्ञान, दर्शन. आत्माको । चारित्र और तपके छत्तीस नायव्वो-जानना। आचारोंके विषयमें।
वीरिआयारो-वीर्याचार ।
अर्थ-सङ्कलना
उपर्युक्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपके छत्तीस आचारोंके विषयमें जो बाह्य और अभ्यन्तर सामर्थ्यको न छिपाकर पराक्रम करता है और उसके पालनमें अपनी आत्माको यथाशक्ति जोड़ता है, ऐसे आचारवान्का आचार वीर्याचार जानना ॥८॥ सूत्र-परिचय
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कायोत्सर्गमें अतिचार विचारनेके लिये इन गाथाओंका उपयोग
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