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अर्थ-सङ्कलना
अर्हत् प्रतिमाओंके आलम्बनसे कायोत्सर्ग करनेकी इच्छा करता हूँ। वन्दनका निमित्त लेकर, पूजनका निमित्त लेकर, सत्कारका निमित्त लेकर, सम्मानका निमित्त लेकर, बोधिलाभका निमित्त लेकर, तथा मोक्षका निमित्त लेकर बढ़ती हुई इच्छासे, बढ़ती हुई प्रज्ञासे, बढ़ती हुई चित्तकी स्वस्थतासे, बढ़ती हुई धारणासे और बढ़ती हुई अनुप्रेक्षासे मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। सूत्र-परिचय
इस सूत्रमें अरिहन्तके चैत्योंको ( स्थापनाजिनोंको) कायोत्सर्गद्वारा वन्दनादि करनेकी विधि बतलायी है, इसीसे यह 'चैत्यस्तव' कहाता है।
चैत्यस्तव
प्रश्न-चैत्य किसको कहते हैं ? उत्तर-बिम्ब, मूर्ति अथवा प्रतिमाको। जिनमन्दिरको भी चैत्य कहा
जाता है। प्रश्न-चैत्य किसके बनाये जाते हैं ? उत्तर-चैत्य अरिहन्त भगवान्के बनाये जाते हैं, क्योंकि मुख्य उपासना
__ आराधना उनकी ही की जाती है । प्रश्न-अरिहन्तके चैत्य किस वस्तुके बनाये जाते हैं ? । उत्तर-अरिहन्तके चैत्य रत्न, स्वर्ण, पाषाण आदिके बनाये जाते हैं ।
वे देखनेमें बहुत ही सुन्दर होते हैं । प्रश्न-अरिहन्तके चैत्यमें क्या विशेषता होती है ? । उत्तर-अरिहन्तके चैत्यमें विशेषता यह होती है कि उनका मुख-कमल
प्रसन्न होता है, उनके नेत्रोंमें शान्तरस भरा हुआ होता है, उनके
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